Origin of Pythagoras Theorem: क्या वाकई भारत की देन है पाइथागोरस प्रमेय?

              लेखक 
प्रखर विश्वकर्मा वैज्ञानिक

22 Jul 2022, 01:48:22 PM IST
Prakhar Laboratory Of Astronomy 
इस आलेख को क्यों पढ़ें
  • पाइथागोरस प्रमेय का इतिहास जानने के लिए
  • गणित के क्षेत्र में बौधायन का क्या योगदान है?
  • क्या पाइथागोरस प्रमेय बेबीलोन की देन है?
  • पाइथागोरस ने क्या प्रमेय ख़ुद खोजने का दावा किया है?
सुनील कुमार
History of Pythagoras theorem in Math: 'समकोण त्रिभुज के कर्ण पर बना हुआ वर्ग, शेष दो भुजाओं पर बने हुए वर्गों के बराबर होता है।' ज्यामिति का यह पाइथागोरस प्रमेय का सूत्र यानी a²+b²=c²आप सभी ने पढ़ा होगा। लेकिन, इस फॉर्म्युले की जितनी चर्चा स्कूल में होती है, उतनी ही स्कूल के बाहर भी। वजह है इसे ईजाद करने वाले के नाम पर मतभेद। माना जाता है कि इसकी खोज यूनान के मकबूल गणितज्ञ पाइथागोरस (Pythagoras) ने की थी। इसलिए इसे पाइथागोरस प्रमेय कहा जाता है। लेकिन, भारत में एक बड़ा वर्ग मानता है कि भारतीयों को 'पाइथागोरस प्रमेय' (Pythagoras Theorem) के बारे में वैदिक काल से ही पता था और इसे पाइथागोरस ने नहीं, बल्कि ऋषि बौधायन ने खोजा था।

यह विवाद इन दिनों फिर चर्चा में है। कर्नाटक सरकार ने नई एजुकेशन पॉलिसी लागू करने के लिए एक टास्क फोर्स बनाई है। इसके चेयरमैन मदन गोपाल का कहना है कि पाइथागोरस प्रमेय के बारे में ग़लत पढ़ाया और बताया जा रहा है। उन्होंने दावा किया कि इस प्रमेय की खोज भारतीय ऋषि ने की थी। जब इस पर विवाद बढ़ा, तो मदन गोपाल ने हवाला दिया कि इसके फैक्ट क्वारा (Quora) और गूगल पर हैं। क्वारा एक सोशल साइट है, जहां यूजर के सवालों के जवाब दूसरे यूजर्स देते हैं, जिन्हें उस विषय की जानकारी होती है। 

वैसे, पाइथागोरस बनाम बौधायन की बहस नई नहीं। साल 2015 में तत्कालीन साइंस और टेक्नॉलजी मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने भी इसका ज़िक्र किया था। उनका कहना था, 'प्राचीन भारतीय वैज्ञानिकों ने बड़ी विनम्रता से दूसरे देशों के वैज्ञानिकों को अपने निष्कर्षों का श्रेय लेने दिया। जैसे कि पाइथागोरस प्रमेय की खोज भारत में हुई थी, लेकिन हमने इसका श्रेय यूनान को लेने दिया।' 

पगोरस प् किसने की थी, यह बड़ा विवादित विषय है। भारत में इसे ईजाद करने का श्रेय ऋषि बौधायन को दिया जाता है, तो ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी के एक प्रफेसर ने ईरान में 1894 में मिले 37 सौ साल पुराने एक आलेख का हवाला देते दावा किया था कि यह प्रमेय पाइथागोरस से सदियों पहले मौजूद था। उनका कहा था कि बेबीलोन सभ्यता के दौरान जब यह थिअरी सामने आई, तो उस समय ग्रीक सभ्यता का विकास भी शुरू नहीं हुआ था। 

इस विवाद की तह में जाने से पहले हमें पाइथागोरस और बौधायन का इतिहास जानना होगा। पाइथागोरस का जन्म 580 से 572 ईसा पूर्व यूनान में हुआ। उन्होंने रहस्यवाद और विज्ञान के क्षेत्र में काफी काम किया, लेकिन दुनियाभर में उनकी पहचान का आधार पाइथागोरस प्रमेय ही है। कहा जाता है कि पाइथागोरस या फिर उनके छात्रों ने सबसे पहले इसका प्रयोग किया। लेकिन, उस जमाने में यूनान के स्कूल बेहद गुप्त तरीके से चलाए जाते थे। वहां के छात्र भी सभी चीज़ों का श्रेय अपने शिक्षकों को देते। ऐसे में यह बात कभी जाहिर नहीं हुई कि इस प्रमेय की खोज पाइथागोरस ने ख़ुद की थी या फिर उन्होंने इस कहीं दूसरी जगह से सीखा था। 


कुछ लोगों का यह भी मानना है कि इस प्रमेय की खोज पाइथागोरस ने नहीं की थी। इसे पाइथागोरस के देहांत के करीब दो सदी बाद उनके नाम से फैलाया जाने लगा। दावा किया जाता है कि यह काम यूनानी दार्शनिक प्लेटो और उनके अनुयायियों ने किया, ताकि दुनियाभर में यूनान का नाम हो। इसके पक्ष में दलील दी जाती है कि पाइथागोरस ने कभी भी किसी गणितीय समस्या को सुलझाने के लिए काम नहीं किया। यह भला कैसे हो सकता है कि इतना काबिल गणितज्ञ सिर्फ एक थिअरी की खोज करके शांत बैठ जाए। 

वहीं, ऋषि बौधायन की बात करें, तो उनका जीवन काल 800 ईसा पूर्व के आसपास माना जाता है यानी पाइथागोरस से काफी पहले। उन्होंने शुल्ब सूत्र और श्रौतसूत्र जैसी क़िताबें लिखीं। शुल्ब सूत्र में ही उस फॉर्म्युले का ज़िक्र है, जिसे आज पाइथागोरस प्रमेय कहा जाता है। इस सूत्र के सहारे यज्ञवेदियां तैयार करने का तरीका बताया गया था। बौधायन ने शुल्ब सूत्र में सिलसिलेवार चित्रों के माध्यम से समझाया कि यह सूत्र काम कैसे करता है। 


अब आते हैं असल सवाल पर- यह प्रमेय पाइथागोरस का है या फिर बौधायन का? रिसर्चर्स की मानें, तो पाइथागोरस और बौधायन ने कभी दावा नहीं किया कि उन्होंने इस प्रमेय की खोज की है। चूंकि यूनानी गणितीय चीज़ों में आगे थे, इसलिए उन्होंने इस फॉर्म्युले का इस्तेमाल गणित में किया। वहीं, बेबीलोन सभ्यता और वैदिक काल में इसका उपयोग गणित से हटकर दूसरी चीज़ों में होता था। शायद यही वजह है कि इस प्रमेय की खोज का श्रेय पाइथागोरस को मिला, न कि बेबीलोन की सभ्यता या फिर बौधायन को।

लेखक : प्रखर विश्वकर्मा ( वैज्ञानिक )

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